सोमवार, 1 जून 2009

अपनी हदों को वापस........ (बवाल)

आलम को ज़द में लेकर, फिर मैं सम्भल पड़ा हूँ !
अपनी हदों को वापस, फिर मैं निकल पड़ा हूँ !!
--- बवाल
आलम = दुनिया
ज़द = रेंज
आदरणीय समीर लाल (उड़न तश्तरी) की मशहूर किताब "बिखरे मोती" के अंतरिम विमोचन के ज़माने से ही हम गायब पाए जाते रहे हैं। शिकायत भी लोगों की रही की उस मशहूर किताब में भी हम गायब ही पाये गये। अमाँ वो हमारे सबसे ज्यादा चाहने वाले हैं, क्या ये काफ़ी नहीं ? ज़रूरी है कि एलानिया परचम सरे-बज़्म लहराए जाएँ। चिरौरी से लेकर फट्कार तलक हमें इस दुनिया में समीर भाई के अलावा कभी किसी की ना पसंद आई ना आवेगी। इसलिए हमारे लिए उनकी मोहब्बत से बढ़कर कुछ नहीं। सबसे पहले उन्हें उनकी ३०० वीं पोस्ट के लिए और ११ हज़ार टिप्पणियों के लिए ढेर सारी बधाइयाँ। नामालूम कितने हवाई ख़त आकर जी-मेल के बक्से में पड़े थे। उन ख़तों में अपने लिए लोगों की इतनी मोहब्बत देखकर आँखें नम हो गईं। दिल की बीमारी से लड़ पड़ने की ताक़त यहीं से तो मिल जाती है जी हमको। ज़्यादा बैठ नहीं पाते अब कम्प्यूटर पर। बिखरे मोती के विमोचन के बाद ज़बरदस्त फ़ूड पोइज़िनिंग हुई। १० दिनों में हालत बदतरीन । ठीक होते ही पूना गाड़ी दौड़ाई। अजीब मसरूफ़ियत में दिन गुज़रे। वहाँ से दक्कन का सफ़र जो अब तक चल रहा है। खै़र, ये सारे अहवाल अगली पोस्टों में। आदरणीय दिनेशराय जी के पुत्र वैभव से जबलपुर में ना मिल पाए क्यों उस दिन हम पणजी में थे, माफ़ी चाहेंगे उनसे।मेल ही बड़ी लेट देख पाए सर। खै़र आपका फ़ोन नम्बर फ़ीड कर लिया है, बात ज़रूर करेंगे पूना पहुँच कर। बैलेंस कम है और यहाँ का रीचार्ज कूपन हमारे मोबाइल को लगता ही नहीं। हा हा।
भाई मुकुल, प्रिय अर्श, विवेक सिंह, सलिल साह्ब, प्रेम भाई, किसलय जी, डूबे जी, फ़ुरसतिया जी, राज सिंह जी, अनुपम जी, प्राण जी, महावीर जी, महेन्द्र मिश्रा जी, परम प्रिय समीर लाल जी, ताऊ जी, राज जी, विनय जी, सीमाजी, भूतनाथ जी, गौतम जी और ना जाने कितने ही अपनों ने याद किया बार बार। आप सभी का बहुत बहुत आभार और बारम्बार माफ़ी की दरकार। कर्नाटक के मंगलूर के एक गाँव नीरमार्ग जो इत्तेफ़ाक से हमारी ससुराल भी हुआ करती है से ये पोस्ट कर रहे हैं । बड़ी मुश्किल से हमारे साले साहब ने कहीं से डाटा कार्ड का इंतज़ाम कर दिया है, उनका भी आभार। शेष अगले अंक में.......
........ बवाल